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सपना नया शहर पुराना



सपना नया शहर पुराना

एक रोज आंखे खुली
और खुली ही रह गई

खिड़की से जब बाहर झांका
नए शहर पर पुरानी नजरें टिकी रही

महक रही थी गीली मिट्टी तब
पानी की टिप टिप बरस रही

चमकते सितारों के तले
शहर की रोशनी चमक रही

चोबारे पर कुछ लोग बैठे थे
जिंदगी के वो किस्से सुना रहे

पास में ही कुछ बच्चे 
नंगे मिट्टी में खेल रहे

दूर तक ना जहरीली चिमनी थी
ना सुनाई दे रहा बाजारों का शोर

दूर कही अनाज के बदले
वो कुछ सब्जी तौल रहा 

बढ़ते अंधेरे में एक आवाज देखो आ रही
गिर रहा कहीं झरना, नदी भी कल कल कर रही

ऊंचे पहाड़ों से हवा भी कुछ गा रही
शांत वातावरण में बस खुशहाली कुछ छा रही

कच्ची सड़को पर देखो
बैलगाड़ी कैसे चल रही

पशुओं के साथ इंसानों की भी
देखो कैसी तालमेल बैठ रही ।

ज्ञान देने को कुछ पेड़ के नीचे
पत्तों को समेटा जा रहा

अतीत से बढ़कर अब
कला का ज्ञान वहां पर बंट रहा 

तकनीकों को से दूर देखो
कैसे शहर विकसित हों रहा

थामना जो ना चाहा कभी
ऐसा ये लम्हा नजर में पल रहा 

फिर मैं भी उठा और निकल पड़ा घर की और
नदी किनारे तंबू लगा, पका रहा जो खाना मेरा रोज

सितारों तले मेरा पलंग तब बिछ रहा
ठंडी हवा, कल कल आवाज और
चहकते पशु पक्षियों के बीच मेरा जीवन चल रहा

सादगी, सत्यता और प्रकृति की ओट में
देखो मेरे  नए सपनो का पुराना शहर सज रहा 

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3 Comments

Gunjan Kamal

05-Dec-2022 07:43 PM

बहुत खूब

Reply

Abhinav ji

02-Dec-2022 07:43 AM

Very nice👍👍

Reply

Sachin dev

01-Dec-2022 05:35 PM

Nice 👌

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